वो घर जो मंदिर था

249.00

  • By: Captain Anshu Abhishek
  • ISBN: 9789370029101
  • Price: 249/-
  • Page: 115
  • Size: 6×9
  • Language: Hindi
  • Category: FICTION / General
  • Delivery Time: 07-09 Day

Description

About The Book

“”वो घर जो मंदिर था”” केवल एक सामाजिक उपन्यास नहीं, बल्कि एक क्रमिक भावनात्मक यात्रा है—एक ऐसे परिवार की जो समय, स्वार्थ, और संवादहीनता के बीच अपने मूल्यों को खो बैठा था। यह कहानी है एक टूटते हुए घर को फिर से जोड़ने की, जहां ईंट-पत्थर से बना मकान तब तक केवल ‘घर’ होता है, जब तक उसमें आत्मीयता, प्रेम और संवेदनाएं जीवित होती हैं। जब ये खत्म हो जाती हैं, तो वही घर बिखरने लगता है—और तब उस घर को ‘मंदिर’ बनाने की यात्रा शुरू होती है।
यह उपन्यास शिक्षा, आत्मबोध, करुणा और सामूहिक संवाद के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की प्रेरणा देता है। इसमें परिवार के पुनर्निर्माण के साथ-साथ समाज के पुनर्जागरण का भी संदेश छुपा है।

“”वो घर जो मंदिर था”” एक ऐसा आईना है जिसमें हर पाठक खुद को, अपने परिवार को और अपने समय को देख सकता है—और शायद एक नई शुरुआत कर सकता है। इस उपन्यास की विशिष्टता इसकी शैली में है —संवाद और चिट्ठियों का प्रयोग इसे आत्मा से जोड़ता है। एक टूटी चिट्ठी, एक मौन माँ, एक सुलझता बेटा — हर पात्र अपने संघर्ष और परिवर्तन की यात्रा में पाठक के दिल को छूता है। जैसे-जैसे संवाद लौटता है, रिश्ते गहराते हैं, और घर — फिर से मंदिर में बदल जाता है।
“”वो घर जो मंदिर था”” सिर्फ एक साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि सामाजिक हस्तक्षेप है। यह उपन्यास बताता है कि बदलाव केवल कानूनों से नहीं, बल्कि बातचीत से आता है। जब हम सुनते हैं, समझते हैं, और संवाद करते हैं — तभी समाज फिर से मनुष्य-केंद्रित बनता है।

भाषा सरल, आत्मीय और गूढ़ अर्थों से भरी है। शैली में एक साथ कथा और विचार दोनों का संतुलन है। पात्रों की सहजता और गहराई इसे हर वर्ग के पाठकों के लिए पठनीय और अनुभवशील बनाती है।

यह उपन्यास उन सभी के लिए है —
जो परिवारों में संवाद की लौ जलाना चाहते हैं,
जो समाज में समझ और सहानुभूति लाना चाहते हैं,

और जो मानते हैं कि भारत का भविष्य केवल आर्थिक नहीं —
संवेदनशील और संवादशील भी होना चाहिए।
आप ही इस पुस्तक का सबसे जीवंत पात्र हैं।

क्योंकि यह उपन्यास वहीं पूरा होता है —
जहाँ आप किसी से पहली बार कहें:
चलो, बात करते हैं।
यह उपन्यास सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है,
यह जीने और महसूस करने के लिए है।

About The Author

कैप्टन अंशु अभिषेक (Master Mariner, Maritime Educator, और समाज सुधारक) समाज में निस्वार्थ सेवा करने के लिए समर्पित हैं। समुद्रों की गहराइयों को पार करने के बाद, उन्होंने अपनी ऊर्जा और समर्पण को समाज की गहरी समस्याओं के समाधान में लगा दिया है।

“”आदित्य दृष्टि सामाजिक विकास प्रतिष्ठान”” के संस्थापक के रूप में, कैप्टन अंशु का मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, कौशल विकास, चाइल्ड केयर, पर्यावरण और चिकित्सा के क्षेत्रों में कार्यरत है। ग्रामीण और वंचित बच्चों की जीवन स्थितियों को सुधारना है। वे मानते हैं कि सही शिक्षा और जीवन कौशल से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। उनका NGO विशेष रूप से महिला सशक्तिकरण, शिक्षा, कौशल विकास, चाइल्ड केयर, पर्यावरण और चिकित्सा के क्षेत्रों में, शिक्षा की असमानता, और ग्रामीण क्षेत्रों में अवसरों की कमी जैसे गंभीर मुद्दों पर काम कर रहा है।

उनका पहला सामाजिक उपन्यास “”वो घर जो मंदिर था”” एक परिवार की भावनात्मक संघर्षों और उनके जीवन में आए बदलावों की सच्ची कहानी है। यह उपन्यास समाज को यह संदेश देता है कि हर परिवार की समस्याओं को समझना और उन पर मिलकर काम करना आवश्यक है। उपन्यास न केवल व्यक्तिगत स्तर पर सुधार का आह्वान करता है, बल्कि समाज में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
कैप्टन अंशु का उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है, जहां शिक्षा, सहानुभूति, और सामूहिक जिम्मेदारी के माध्यम से हर व्यक्ति को समृद्धि और शांति का अनुभव हो। उनकी निस्वार्थ सेवा और दृष्टिकोण सभी को बेहतर जीवन की दिशा में प्रेरित करते हैं।

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