Premchand Krit Godaan Mein Krishak Jeevan Sangharsh
₹303.00
By:M. Dr. Ashok Kumar Vidrohi
ISBN :9789394607286
PRICE: 303
Page: 219
Category : FICTION / General
Delivery Time: 7-9 Days
Description
प्रेमचन्द व्यक्तित्व एव कृतित्व-
व्यक्तित्व:- गोदान में निहित संघर्ष, जन्म, माता पिता, शिक्षा एवं अध्यन,
व्यवसाय,विवाह, जीवन संघर्ष,पारिवारिक स्तर, आर्थिक स्तर, साहित्यिक स्तर
कृतित्व:- कहानी एवं उपन्यास, सेवा सदन, वरदान, प्रेम आश्रम,
स्वभाव की विशेषताएं, जानिए उपन्यास , संक्षिप्त परिचय, सेवासदन,वरदान,प्रेमाश्रम , रंगभूमि,कायाकल्प,निर्मला,प्रतिज्ञा, गबन,कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र,नाटक, निबंध, जीवनी साहित्य, अनुवाद
समाहार:
द्वितीय अध्याय:-
भूमिका
संघर्ष का तात्पर्य जीवन के लिए संघर्ष,संघर्ष के प्रकार, चाह एवं आंतरिक
तृतीय अध्याय :-
सामाजिक संघर्ष
सामाजिक समस्याएँ विधवा जीवन दहेजे प्रथा,वेश्या समस्या,अछूत समस्या आदि प्रमुख है।
समाहार:
चतुर्थ अध्याय:-
आर्थिक संघर्ष
महाजनीसभ्यता पर आधारित पूँजीवाद एवं औद्योगिकरण का प्रभाव,सोवियत क्रांति का प्रेमचंद पर प्रभाव,
आर्थिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष, भूमिहीन कृषको एवं जमीदारों के बीच संघर्ष, आर्थिक समस्याएँ।
समाहार:
पंचम अध्याय:-
गोदान में धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं राजनीतिक संघर्ष
भाग्यवादिता, धार्मिक रूढ़ियाँ, ग्रामीण संस्कृति नैतिक सिद्धान्तों की मान्यताओं के सन्दर्भ में।
भावात्मक संघर्ष, वैचारिक संघर्ष
समाहार:
षष्ठ अध्याय:-
गोदान में वर्णित ग्रामीण एवं नगरीय संघर्ष
गोदान में वर्णित ग्राम और नगर की सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक एव सास्कृतिक परिस्थितियों में अन्तर :
समाहार:
सप्तम अध्याय:-
प्रेमचंद के गोदान में उपदेयता
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची,
व्यक्ति जीवन में जन्म से और मृत्यु तक सदैव संघर्ष करता रहता है। वह परिवार समाज एवं देश में जनमानस के समक्ष अपनी विशेषताओं को प्रकट करते हुए समाज को नई गति प्रदान करता है।मनुष्य का स्वभाव है कि वह जिस जगह रहता है वह अपने वर्चस्व के प्रभाव से सबको अपने सानिध्य में या अधीन रखना चाहता है। और वह एकाकी शासन चाहता है ऐसी पुरातन परंपरा से प्रारंभ हुआ सामंती युग स्वातंत्र्योत्तर भारत से पूर्व प्रचलित था। एक और तो स्वतंत्रा आंदोलन चल रहा था दूसरी और औद्योगिक क्रांति चल रही थी हरित क्रांति चल रही थी किसानों में आक्रोश था उस समय प्रेमचंद जी ने जो साहित्य लिखा वह मानव जीवन के यथार्थ को आदर्श उन्मुख कर प्रेरणा का स्रोत बना कह सकते हैं। कि प्रगतिशील विचारधारा को अपना करके सामंती परिवेश का विरोध एवं समाज में व्याप्त विसंगतियों तथा प्रशासन की खामियां और राजनीतिक दुष्प्रभाव के कारण किसान की दयनीय स्थिति का वर्णन किया।जो गोदान में देखने को मिलता है।समाज में जाति धर्म की राजनीति किसान को शोषण कर अपने अधीन रखने की थी। पारिवारिक सामंजस्य का अभाव सामंतों द्वारा कर दे करके गरीब को और गरीब बनाना राजनीतिक आंदोलन होमरूल आंदोलन कांग्रेसी आंदोलन गांधी का सत्याग्रह आदि ऐसी विचारधाराएं थी जिनको प्रेमचंद जी ने अपने सभी साहित्य में किसी न किसी रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया करो कि उनके जीवन पर गांधी जी का विशेष प्रभाव रहा है। प्रासंगिकता की बात करें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि जो समस्याएं प्रेमचंद जी के समय थी उसमें संसाधनों का अभाव था किंतु किसान कठोर परिश्रम के द्वारा धान का उचित मूल्य आज भी प्राप्त नहीं कर पा रहा है तथा सरकार द्वारा सेतिपुर्ती के रूप में किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल रहा है और वहआत्महत्या कर रहा है। किसान की गंभीरता से आज के किसान को प्रेरणा लेनी चाहिये ।
प्रस्तुत पुस्तक लेखन का उद्देश्य विशेष रूप से शोधार्थी को शोध कार्य मे सहयक पुस्तक के रूप उपयोगी सिद्द होगी प्रस्तुत पुस्तक में समकालीन विषमता है चुनौतीपूर्ण कृषक की जीवन कथा एवं मानवीय संवेदनाओं को नए रूप में प्रस्तुत कर तुलनात्मक अध्ययन करने का विनम्र प्रयास किया है जो भावी पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है इस पुस्तक को लिखने में सबसे पहले श्री कल्ला जी महाराज की असीम कृपा से यह कार्य प्रारंभ किया विश्वेश्वर महादेव और हनुमान जी की जिसमें विश्वविद्यालय के कुलसचिव माननीय डॉ मधुसूदन शर्मा विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन माननीय श्री कैलाश चंद जी मूंदड़ा तथा ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डॉ मृत्युंजय तिवारी जी आदि विद्वानों के सहयोग से यह कार्य अपने गति को प्राप्त हो सकता है धर्मपत्नी श्रीमती कृपा शर्मा तथा संस्कृत विभाग की सहायक आचार्य सुश्री रचना शर्मा जेष्ठ पुत्र नीतीश कुमार शर्मा अनुज पुत्र अनुपम के द्वारा किए गए सहयोग से प्रस्तुत पुस्तक को जांच कर अशुद्धि संशोधन में विशेष योगदान रहा इन सभी का मैं आभार व्यक्त करूंगा और आगे और भी अच्छा लिखने का प्रयास करूंगा तथा चित्र प्रकाशन द्वारा इस किताब को प्रकाशित करने में जो सहयोग मिला है वह धन्यवाद के पात्र हैं
(डॉ. अशोक कुमार शर्मा)
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