Kya Hota Agar Main Ud Sakatee

155.00

By:Dr. Neha Kathor

ISBN: 9789391219819

Page: 75

PRICE:  155

Category: POETRY / General

Delivery Time: 7-9 Days

 

Description

About the book

जून का महीना चल रहा था, बहुत गर्मी थी उन दिनों। महमानो के लिए जल्दी जल्दी पूरियां तलते गर्मी में परेशान अपनी १५ साल की बिटिया को निशीहत देते हुए एक मां ने बोला, बिटिया ये तो हमारा काम ही है, लड़कियो को तो जीवन में बहुत हिम्मत रखनी होती है।जैसे जैसे जीवन आगे बड़ेगा बहुत तरह के दर्द और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है लड़कियो को बस चुप चाप सब सहने की आदत डालनी पड़ती है।इन शब्दों को सुन कर मुझे बहुत बुरा लगा, मन करा लड़ पढ़ू, पर आज पास की और औरतों ने भी उनकी बात पे हमीं भरी। तो मैंने भी अपनी आवाज को दबा लिया, मैं भी चुप रही। हम लड़कियों के लिए सबसे मुश्किल है अपने अंदर की आवाज़ को डुंडना क्युकी बचपन से ही हमे उन आवाजों को दबाना सिखाया है। जायदा तर लड़कियों की परवरिश ही घर के पुरषों को प्रतमिक्था देते हुए बीती है, घर के हर निर्णय पुरषों को लेते हुए ही देखा है,पहला निवाला पिता भाइयों के मुंह में ही जाते देखा है, कुछ स्वादिष्ट व्यंजन का बड़ा टुकड़ा पहले उनके लिए हो रखा जा है, तेज आवाज बोलना, घर देर से आना, अपनी इच्छा के कपड़े पहनना, तेज आवाज से औरत की आवाज को दबा देना यही सब देखते हुए तो भारत की जायदा तर लड़किया बड़ी हुईं है।
तो फिर अंदर की आवाज बहार आयेगी कैसे ? ऐसी ही ज़िंदगी के अलग अलग मझधार में खड़ी लड़कियों को दिल की आवाज है इस किताब में। कविताओं के द्वारा नर्म शब्दों में दिल की बात रखने की कोशिश है और साथ मिल के परेशानियों का हल ढूंढ़ने की एक शुरवात। “”जो धारणाएं सदियों से चली आ रही है, धीरे धीरे ही उन्हें बदलना होगा। पहले हमे खुद में बदलाव लाना होगा, अपनी परवरिश को बदलना होगा”

About the author

“डॉ.नेहा काठौर
एमबीबीएस, एमडी
एनेस्थीसियोलोजी
देहरादुन
मैं एक माध्यमवर्ग परिवार में, दो बड़े भाई के साथ पली बड़ी हूं। मैं उन कुछ खुशनसीब लड़कियो में से हूं, जिनके माता पिता ने उनकी पढ़ाई को उतना ही महत्वपूर्ण समझा जितना की बेटो के भविष्य को समझा और मेरे सपनों पर भरोसा किया।
पर फिर भी वो समाज के अनकही असमंता से मुझे बचा नही पाए और मेरे अंदर उठने वालो हजारों सवालों का जवाब ना दे पाए।
मेरे एमबीबीएस में एडमिशन के कुछ दिन पहले ही मेरी मम्मी जी का दिहांत हो गया था। उनके मार्गदर्शन के बिना
मैंने खुद को बहुत अकेला पाया, ऐसे वक्त पे पापा जी ने हिम्मत दी अपने हर निर्णय लेने की और मुझे बहुत सशक्त बनाया।
आज मैं एक पत्नी हूं, प्यारे से ६ साल के बच्चे के मां हूं, एक सफल डॉक्टर हूं। पर फिर भी कदम कदम पे लड़की होने का कीमत को चुकाना पड़ा। आज के आधुनिक भारत में भी हर लड़की ने कभी न कभी इस कीमत को चुकाया ही होगा।
पर मैं हर पल इस अंतर को खत्म करने के लिए लड़ रही हूं, कुछ अपनेमे बदलाव लाके और कुछ अपनी परवर्रिश को सशक्त बना के लड़कियो के भविष्य को बदलने की कोशिश कर रही हूं।
इस किताब की हर कविता उन लड़कियो की आवाज है जो अपने मुंह से दिल की बात बोल नही पाती, अपनी परेशानियों को बयान नही कर पाती और मेरी ये उन परेशानियों का हल निकालने की एक कोशिश।”

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